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आईसीएमआर-राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान

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हम कौन हैं और हम क्या करते हैं?

आईसीएमआर-राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान (एनआईआरटीएच), जिसे पूर्व में क्षेत्रीय जनजाति आयुर्विज्ञान अनुसंधान केन्द्र (आरएमआरसीटी) के नाम से जाना जाता था, ने वर्ष 1984 में अपनी शुरूआत इसके समीप नेताजी सुभाष चंद्र बोस चिकित्सा महाविद्यालय, जबलपुर के तीन कमरों से की थी। बाद में आरएमआरसीटी को 36 एकड़ के हरे-भरे परिसर में निर्मित मुख्य भवन में अप्रैल 2002 में स्थानांतरित किया गया और इसे इसके वर्तमान नाम एनआईआरटीएच के तौर पर वर्ष 2014 में पुनःनामित किया गया। आईसीएमआर-एनआईआरटीएच ने तब से वायरल डायग्नोसिस, मौलेक्यूलर जेनेटिक्स, मौलेक्यूलर पैरासाइटोलॉजी, जेनोमिक एपिडेमायोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, क्लिनिकल एपिडेमायोलॉजी, और एक आधुनिक केन्द्रीय पशु सुविधा से जुड़े इन विट्रो अनुसंधान सुविधाओं पर प्रयोगशालाओं को स्थापित करने में प्रगति की है।

आईसीएमआर-एनआईआरटीएच देश की जनजातीय आबादी के स्वास्थ्य मुद्दों पर अनुसंधान आयोजित करता है, जिसमें पोषण संबंधी विकार, सामान्य संक्रामक और गैर-संक्रामक रोग, पर्यावरणीय स्वास्थ्य समस्याएं आदि शामिल हैं। आईसीएमआर-एनआईआरटीएच के वैज्ञानिक नियमित रूप से मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासी स्वास्थ्य और अन्य स्वास्थ्य विकास कार्यक्रमों के निदान, नियोजन, निगरानी और मूल्यांकन में राज्य के स्वास्थ्य विभागों की सहायता करते हैं और इन राज्यों के स्वास्थ्य अधिकारियों को प्रशिक्षण देते हैं। आईसीएमआर-एनआईआरटीएच उन रोगों पर कार्य करता है जो ज्यादातर आदिवासी क्षेत्रों में फैलते हैं, जैसे कि मलेरिया, यक्ष्मा (ट्यूबरकुलोसिस), हीमोग्लोबिनोपैथी, उच्च रक्तचाप, फाइलेरिया, फ्लोरोसिस, डेंगू, चिकनगुनिया और जूनोटिक रोग जो जनजातीय आबादी के लिए महत्वपूर्ण हैं। आईसीएमआर-एनआईआरटीएच जनजातीय क्षेत्रों में बीमारी के प्रकोप की निगरानी और अनुसंधान भी करता है, और राज्य सरकार को ऐसी स्थितियों को नियंत्रित करने में मदद करता है। जैव चिकित्सा अनुसंधान के अलावा, आईसीएमआर-एनआईआरटीएच के वैज्ञानिक नियमित रूप से निदान और बीमारियों की रोकथाम के लिए आधुनिक तकनीकों पर राज्य के स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। इसके अलावा, जनजातीय आबादी के सामाजिक-आर्थिक, जनसांख्यिकीय और सांस्कृतिक पहलुओं पर शोध ने रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के उपायों को परिभाषित करने में भी सक्षम बनाया है।

जबलपुर में अपनी उपस्थिति के अलावा आईसीएमआर-एनआईआरटीएच की हिमाचल प्रदेश के केलोंग, जिला- लाहौल एवं स्‍पीति में भी एक स्थानीय इकाई है, जो औसत समुद्र तल (एमएसएल) से 10,100 फुट की ऊंचाई पर अवस्थित है जिससे कि हिमालयी जनजातीय समुदायों के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर जैवचिकित्सीय तथा सामाजिक विज्ञान अनुसंधानों का आयोजन किया जा सके।

आईसीएमआर-एनआईआरटीएच का जनादेश

  • देश के जनजातीय समुदायों की विशिष्ट स्वास्थ्य समस्याओं और स्वास्थ्य आवश्यकताओं को सामने लाने के लिए अनुसंधान की योजना बनाना, संचालन और समन्वय करना।
  • जनजातीय समुदायों के बीच संक्रामक एवं गैर-संक्रामक रोगों के ऐपीडेमियोलॉजीकल (महामारी विज्ञान) अध्ययनों का संचालन करना।
  • आदिवासी और अन्य समुदायों में हीमोग्‍लोबिनोपैथीज की जांच करना।
  • जनजातीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों के नियोजन, क्रियान्वयन, निगरानी और मूल्यांकन में स्वास्थ्य कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने में सरकार की सलाह और सहायता करना।

आईसीएमआर-एनआईआरटीएच का अंतिम लक्ष्य बुनियादी, व्यावहारिक और परिचालनगत अनुसंधान के माध्यम से जनजातियों के बीच स्वास्थ्य, पोषण और स्वास्थ्य जागरूकता में सुधार करना है क्योंकि उन्हें अब देश में स्वास्थ्य अनुसंधान के तहत विशेषाधिकार प्राप्त नहीं माना जाता है।