निदेशक की डेस्क से

राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान (एनआईआरटीएच), जबलपुर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के तत्वावधान में कार्यरत देश के 30 स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थानों में से एक है। भारत के हृदय प्रदेश कहे जाने वाले मध्य प्रदेश राज्य के हरे-भरे 44 एकड़ के परिसर में फैला आईसीएमआर-एनआईआरटीएच, घने जंगलों से घिरा हुआ आदिवासी बहुल इलाका है, और यह एकमात्र सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित संगठन है, जो देश की जनजातियों के स्वास्थ्य पर शोध के लिए समर्पित है। जनजातीय समुदायों के स्वास्थ्य पर ध्यान देना प्रमुख राष्ट्रीय महत्व है, विभिन्न प्रशिक्षण और विशेषज्ञता के साथ आईसीएमआर-एनआईआरटीएच के बायोमेडिकल वैज्ञानिक, जो 100 से अधिक तकनीकी कर्मचारियों और विभिन्न समयबद्ध अनुसंधान परियोजनाओं के कई वैज्ञानिक कर्मचारियों द्वारा समर्थित हैं, राज्य सरकार के स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ सहयोग में अथक प्रयास कर रहे हैं, न केवल इन जनजातियों में प्रचलित विभिन्न रोगों का निदान और हस्तक्षेप करने के लिए, बल्कि आधुनिक औजारों का उपयोग करते हुए और उच्च तकनीक की बायोमेडिकल रिसर्च करने हेतु रोगों के तंत्र को समझने के लिए, ताकि इनकी रोकथाम और नियंत्रण के वास्तविक तरीकों को विकसित किया जा सके। इसके अलावा, आईसीएमआर-एनआईआरटीएच के सामाजिक वैज्ञानिक नियमित रूप से विभिन्न जनजातीय समुदायों के साथ रोग निवारक उपायों पर अभियान चलाने के लिए परस्पर कार्य कर रहे हैं, जिससे समुदायों में बड़े पैमाने पर इनके प्रसार से पहले ही स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को कम किया जा सके।


अनुसंधान गतिविधियों को सुचारू बनाने के लिए, आईसीएमआर-एनआईआरटीएच के वैज्ञानिक और तकनीकी कर्मी अपने प्रशिक्षण और विशेषज्ञता के आधार पर विभिन्न प्रभागों के छह अलग-अलग छोटे समूह बनाते हैं; जैसे कि संक्रामक रोग, आनुवांशिक विकार, गैर-संक्रामक रोग, सामाजिक विज्ञान और नृजाति चिकित्साविज्ञान, वेक्टर जनित रोग और वायरल तथा जूनोटिक रोग। आईसीएमआर-एनआईआरटीएच न केवल इस क्षेत्र के जनजाति और गैर-जनजाति आबादी हेतु कई बीमारियों के लिए अत्यधिक संवेदनशील तरीकों का उपयोग करते हुए, निःशुल्क प्रयोगशाला आधारित नैदानिक सुविधाएं प्रदान करता है; बल्कि व्यक्तिगत सुरक्षा, रोकथाम और रोगों पर नियंत्रण के लिए रोगियों और उनके रिश्तेदारों को नियमित परामर्श भी प्रदान किया जाता है। इसके अलावा, आईसीएमआर-एनआईआरटीएच के वैज्ञानिकों और तकनीकी कर्मचारियों की टीम नियमित रूप से दुर्गम जनजातीय क्षेत्रों में स्थल दौरे करती हैं, ताकि समुदायों में विभिन्न बीमारियों के फैलने पर सर्वेक्षण किया जा सके, और जहां कहीं भी जरूरत पड़े मरीजों का इलाज करने में स्थानीय स्वास्थ्य सुविधाओं से उन्हें मदद मिल सके। वे एक साथ जैविक नमूने भी एकत्र करते हैं, जो समाधान और नियंत्रण खोजने के लिए अनुसंधान के लिए कच्चे संसाधन का गठन करते हैं, जिससे जनजातियों के स्वास्थ्य का बेहतर प्रबंधन किया जा सकता है।


जनजातीय स्वास्थ्य के क्षेत्र में अत्यधिक प्रतिबद्ध अनुसंधान के लिए आईसीएमआर-एनआईआरटीएच को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), जिनेवा द्वारा प्रतिष्ठित ‘‘जनजातीय आबादी के स्वास्थ्य पर शोध हेतु सहयोग केन्द्र’’ के रूप में सम्मानित किया गया है। इसके अलावा, आईसीएमआर-एनआईआरटीएच ‘‘ट्राइबल हेल्थ रिसर्च फोरम’’ के समन्वय संस्थान के रूप में कार्य करता है, जो आईसीएमआर द्वारा गठित है और यह इस कार्य में सहभागी आईसीएमआर संस्थानों के बीच, आदिवासी स्वास्थ्य पर अनुसंधान का सामन्जस्य करने हेतु जिम्मेदार है, जो भारत में स्थानीय जनजातियों के स्वास्थ्य पर कार्य कर रहे हैं। अपनी स्थापना के इन 32 वर्षों में, आईसीएमआर-एनआईआरटीएच ने देश के स्वास्थ्य अनुसंधान उत्पादन में विशेष रूप से योगदान दिया है, विशेष तौर पर जनजातीय स्वास्थ्य पर प्रकाशनों, मोनोग्राफों के रूप में अनुसंधान के प्रसार और अनुसंधान/विकास आधारित स्वास्थ्य नीतियों के निर्माण के माध्यम से। आईसीएमआर-एनआईआरटीएच की भौगोलिक अवस्थिति और बायोमेडिकल तथा सामाजिक वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए जबरदस्त सुविधाओं के कारण ही यह संभव हो सका है, जो कि आईसीएमआर नेतृत्व द्वारा सृजित किया गया है, और जो आज तक जारी है। यही कारण है कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के वैज्ञानिक आईसीएमआर-एनआईआरटीएच के वैज्ञानिकों के साथ हाथ मिलाने और विशेषज्ञता साझा करने के लिए आकर्षित हो रहे हैं, जिससे सहयोगी अनुसंधान का एक मजबूत नेटवर्क का निर्माण हो सके और साथ ही जनजातियों में काफी हद तक प्रचलित कई बीमारियों से संबंधित निदान का मूल्यांकन और टीकों आदि का परीक्षण किया जा सके।


उत्साही युवा पेशेवरों का प्रभावी एकीकरण और प्रतिबद्ध योगदान प्रत्येक संगठन की विकास की कुंजी है, विशेष रूप से आईसीएमआर-एनआईआरटीएच जैसे वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थानों के लिए। चिकित्सा, जैविक, सामाजिक और प्राकृतिक वैज्ञानिकों के रूप में मेहनती और प्रतिबद्ध युवा जो आदिवासी स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए एक प्रभाव बनाना चाहते हैं, ऐसे युवाओं को आईसीएमआर-एनआईआरटीएच के वैज्ञानिकों के साथ हाथ मिलाने के लिए आमंत्रित किया जाता है ताकि जनजातियों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को कम किया जा सके, और भारत के माननीय प्रधानमंत्री के ‘मेक इन इंडिया फॉर हेल्दी इंडिया’ अभियान में योगदान दिया जा सके।

डॉ. अपरूप दास
निदेशक, आईसीएमआर-एनआईआरटीएच



डॉ. अपरूप दास का शैक्षणिक प्रोफाइल

डॉ. अपरूप दास प्रशिक्षित जनसंख्या आनुवंशिकीविद् और आणविक विकासवादी जीवविज्ञानी हैं। उन्होंने जीनोमिक्स और डीएनए अनुक्रम विश्लेषण पर अपने व्यापक प्रशिक्षण और अनुभव को कार्यान्वित किया है, शुरूआत में ड्रोसोफिला और बाद में मलेरिया में; साथ ही उन्होंने भारत और अफ्रीका में मलेरिया महामारी विज्ञान को समझने के लिए इन आधुनिक जैविक तकनीकों को लागू किया है। भुवनेश्वर के उत्कल विश्वविद्यालय से जूलॉजी (प्राणि विज्ञान) में स्नातक और स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात डॉ. दास जर्मनी के म्यूनिख स्थित लुडविग मैक्सिमिलियन विश्वविद्यालय में चार वर्षीय पोस्ट-डॉक्टरेट अध्ययन के लिए गए, जहाँ उन्होंने जीनोमिक्स और जैव सूचना विज्ञान में प्रशिक्षण प्राप्त किया। वर्ष 2005 में भारत वापस आने के बाद, वे नई दिल्ली में आईसीएमआर- राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में वह एक वैज्ञानिक के रूप में शामिल हुए, जहाँ उन्होंने 12 वर्ष तक मलेरिया की आणविक महामारी विज्ञान का अध्ययन करके सेवा की। मई 2016 में, उन्होंने आईसीएमआर-चिकित्सा कीट विज्ञान अनुसंधान केंद्र, मदुरै, तमिलनाडु में निदेशक के रूप में कार्यभार ग्रहण किया और उसके बाद आईसीएमआर-राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान के निदेशक के रूप में यहां स्थानांतरित हुए। भारत और कैमरून (अफ्रीका) में मलेरिया की आणविक महामारी विज्ञान (मौलेक्यूलर ऐपिडेमायोलॉजी) पर उनके अनुसंधान के 14 वर्ष की अवधि में डॉ. दास और उनके अनुसंधान समूह ने मलेरिया परजीवी, दवा प्रतिरोध, मिश्रित प्रजातियों के संक्रमण, मच्छर वैक्टर की जनसंख्या की गतिशीलता, मलेरिया होने की संवेदनशीलता और मलेरिया से संबंधित फार्माकोजेनोमिक्स की कई दिलचस्प आनुवंशिक विशेषताओं को उजागर किया था।

डॉ. दास को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है और ड्रोसोफिला और मलेरिया मॉडल, दोनों पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों को सम्मिलित करने वाली कई शोध परियोजनाओं में शामिल किया गया है। उन्होंने जनसंख्या और विकासवादी आनुवंशिकी और जीनोमिक्स में 100 से अधिक प्रकाशनों का लेखन किया है, और 12 पीएचडी और 70 से अधिक स्नातकोत्तर शोध का पर्यवेक्षण व मार्गदर्शन किया है। उन्होंने वर्ष 2010 और 2017 में मलेरिया जीनोमिक्स पर दो 15-दिवसीय ग्लोबल एक्सचेंज व्याख्यान पाठ्यक्रम सहित कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कार्यशालाओं/बैठकों का आयोजन किया है, जो कि यूरोपीय आणविक जीवविज्ञान संगठन (ईएमबीओ), जर्मनी द्वारा वित्त पोषित किया गया था। वे कई उच्च प्रभाव वाली अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं के संपादक के रूप में सेवारत हैं, और लगातार कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं की पांडुलिपियों की समीक्षा करते हैं।

वर्तमान में डॉ. दास और उनका समूह दो अलग-अलग प्रमुख अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं में शामिल हैं; एक जो भारत में जटिल मलेरिया को उजागर करने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ, यूएसए द्वारा वित्त पोषित है, और दूसरे को भारत-कनाडा सेंटर फॉर इनोवेटिव मल्टीडिसिप्लिनरी पार्टनर्स फॉर एक्सीलरेट कम्युनिटी ट्रांसफॉर्मेशन एंड सस्टेनेबिलिटी (आईसी-इम्पैक्ट्स) द्वारा वित्त पोषित किया गया है, जो मलेरिया निदान के लिए स्वास्थ्य देखभाल बिंदु को विकसित करने पर कार्य कर रहा है। डॉ. दास चिकित्सा पद्धति में पारंपरिक जनजातीय ज्ञान का लाभ उठाने और आधुनिक चिकित्सा पद्धति हेतु ज्ञान का रूपांतरण करने में रुचि रखते हैं। डॉ. दास का अंतिम उद्देश्य भारतीयों में जनसंख्या जीनोमिक जानकारी का उपयोग करना और आधुनिक निदान और उपचार के माध्यम से भारत में विकासवादी (व्यक्तिगत) दवा तैयार करना है।